एक अजीब सा एहसास है
एक अजनबी, जो न पराया न खास है
एक खुशी, जो न दूर न पास है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
घर से दूर चला जाता है कोई
दो पैसे कमाने को
अपनों को पीछे छोड़ जाता है कोई
अपनी किस्मत आजमाने को
आज तेरे पास हर सुख हर ठाठ है
लेकिन इस अनजान देश में
आज भी तुझे किसी अपने की तलाश है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
मैं यहाँ दिवाली नहीं मनाता
क्योंकि जब मैं दीप जलाता हूँ तो
उन्हें हवा के झोखों से बचाने को कोई हाथ नहीं होता
मैं यहाँ होली नहीं मनाता
क्योंकि सुबह उठते ही मेरा मुह रंग देने वाला
कोई अपना साथ नहीं होता
लेकिन फिर भी दुनिया का हर सुख मेरे पास है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
इसी गुत्थी में उलझा ये मन आज है ||
- गौरव