एक अजीब सा एहसास है
एक अजनबी, जो न पराया न खास है
एक खुशी, जो न दूर न पास है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
घर से दूर चला जाता है कोई
दो पैसे कमाने को
अपनों को पीछे छोड़ जाता है कोई
अपनी किस्मत आजमाने को
आज तेरे पास हर सुख हर ठाठ है
लेकिन इस अनजान देश में
आज भी तुझे किसी अपने की तलाश है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
मैं यहाँ दिवाली नहीं मनाता
क्योंकि जब मैं दीप जलाता हूँ तो
उन्हें हवा के झोखों से बचाने को कोई हाथ नहीं होता
मैं यहाँ होली नहीं मनाता
क्योंकि सुबह उठते ही मेरा मुह रंग देने वाला
कोई अपना साथ नहीं होता
लेकिन फिर भी दुनिया का हर सुख मेरे पास है
सोचने पर मजबूर कर देता है यह एहसास मुझे कि
तू आज खुश है या निराश है?
इसी गुत्थी में उलझा ये मन आज है ||
- गौरव
Thursday, November 4, 2010
Friday, October 29, 2010
विषय की तलाश है ...
कुछ लिखना चाहता हूँ
पर विषय की तलाश है
हँसना चाहता हूँ
पर खुशियाँ नहीं पास हैं
कब बरसेगा वो अम्बर
मेरे मन को प्यास है
मिल जाए इक ख़ुशी
जिसकी कबसे आस है
फिर से न जाने क्यों
आज ये दिल उदास है ||
कहते हैं खोजने पर खुदा भी मिल जाता है
तो सोचने पर विषय भी मिल ही जाएगा
कितना भी रोके खुदको
लेकिन मौसम आने पर ये अम्बर भी बरस ही जाएगा ||
पर विषय की तलाश है
हँसना चाहता हूँ
पर खुशियाँ नहीं पास हैं
कब बरसेगा वो अम्बर
मेरे मन को प्यास है
मिल जाए इक ख़ुशी
जिसकी कबसे आस है
फिर से न जाने क्यों
आज ये दिल उदास है ||
कहते हैं खोजने पर खुदा भी मिल जाता है
तो सोचने पर विषय भी मिल ही जाएगा
कितना भी रोके खुदको
लेकिन मौसम आने पर ये अम्बर भी बरस ही जाएगा ||
Sunday, October 24, 2010
तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू ...
ऐ दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू
तुझे मैं कैसे हर ख़ुशी दिला दू ?
काश कि मैं तेरे पास होता
तेरा दर्द बाँटता, तेरा साथ देता
तेरे टूटते काँधों का एक सहारा बनता
इन कांटो भरी राह में फूलों के पत्ते बिछाता |
तुझे मैं कैसे ये दुखों का दरिया पार करा दू
ऐ दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू?
मंज़िल फिर भी तुझे मिल जाएगी
इतना तो मैं जानता हूँ
ऐ दोस्त , इतना कमज़ोर नहीं है तू
इतना तो तुझको पहचानता हूँ
बस चाहता हूँ कि अब जब तुझको ज़रूरत है
तो तेरा साथ निभाऊ
तेरे हर गिरते आंसू को कैद करने को
मैं एक प्याला बन जाऊ |
तू जिस पर हँस दे, मैं वो कौन सी तुझे बात सुना दू
ऐ दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू ?
- गौरव
तुझे मैं कैसे हर ख़ुशी दिला दू ?
काश कि मैं तेरे पास होता
तेरा दर्द बाँटता, तेरा साथ देता
तेरे टूटते काँधों का एक सहारा बनता
इन कांटो भरी राह में फूलों के पत्ते बिछाता |
तुझे मैं कैसे ये दुखों का दरिया पार करा दू
ऐ दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू?
मंज़िल फिर भी तुझे मिल जाएगी
इतना तो मैं जानता हूँ
ऐ दोस्त , इतना कमज़ोर नहीं है तू
इतना तो तुझको पहचानता हूँ
बस चाहता हूँ कि अब जब तुझको ज़रूरत है
तो तेरा साथ निभाऊ
तेरे हर गिरते आंसू को कैद करने को
मैं एक प्याला बन जाऊ |
तू जिस पर हँस दे, मैं वो कौन सी तुझे बात सुना दू
ऐ दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू ?
- गौरव
Saturday, October 23, 2010
और मंज़िल को सामने पा.....
ज़िंदगी की हर डगर पर
मुश्किलें हैं हर कदम पर
इनसे तू घबरा नहीं, हार जाएगा यह सोचकर
जीत होगी ख़ुशी मिलेगी
टकराएगा इनसे अगर
जानता हूँ बहुत दुखदायी है
प्रयत्न करने पर भी हारना
पर ये जानो, उससे भी बुरा है
बिना लड़े ही हारना
एक बार गिर गया तो क्या
चल उठ फिर खड़ा हो जा
आशा की नजरों से देख
और मंज़िल को सामने पा ||
-गौरव

मुश्किलें हैं हर कदम पर
इनसे तू घबरा नहीं, हार जाएगा यह सोचकर
जीत होगी ख़ुशी मिलेगी
टकराएगा इनसे अगर
जानता हूँ बहुत दुखदायी है
प्रयत्न करने पर भी हारना
पर ये जानो, उससे भी बुरा है
बिना लड़े ही हारना
एक बार गिर गया तो क्या
चल उठ फिर खड़ा हो जा
आशा की नजरों से देख
और मंज़िल को सामने पा ||
-गौरव

तू जैसे एक आदत सी बन गयी थी...
तू जैसे एक आदत सी बन गयी थी
तुझसे रोज लड़ना झगड़ना एक शरारत हो गयी थी |
कहने को तो मै अब भी तेरे पास ही हूँ
पर औपचारिकता न रह जाएं अपनी बातें
पहले जो दिल को ख़ास हो गयी थी |
- गौरव
तुझसे रोज लड़ना झगड़ना एक शरारत हो गयी थी |
कहने को तो मै अब भी तेरे पास ही हूँ
पर औपचारिकता न रह जाएं अपनी बातें
पहले जो दिल को ख़ास हो गयी थी |
- गौरव
Saturday, April 17, 2010
कुछ पल जो छिन गए मुझसे ..

कुछ पल जो छिन गए मुझसे
बातें जो हमेशा चाही थी इस दिल ने |
सपने संजोये मै भी बैठा था
आएँगे वो दिन मेरा दिल हमेशा मुझसे कहता था |
वो दिन आए, मगर मै ही नहीं था
खुशियाँ थी कहाँ, मगर मै कहीं था |
इसीलिए नहीं कहूँगा कि वह सपना टूटकर चूर हुआ
पर ना जाने क्यों मै ही उन्हें खो देने को मजबूर हुआ |
लेकिन कुछ पल जो छिन गए मुझसे
बहुत सारे पल वो मुझे दे गए ज़िंदगी के |
- गौरव
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