Monday, September 28, 2009

एक पावन मूर्ति ...

(केवल वयस्कों के लिए)


तीर्थाधिराज
श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर की चौकी में
जो मिथुन मूर्तियाँ लगी हुईं
मैं उन्हें देख एक जगह पर ठिठकता हूँ -

प्राकृतिक नग्नता की सुषमा में ढली हुई
नारी घुटनों के बल बैठी;
उसकी नंगी जंघा पर नंगा शिशु बैठा,
अपने नन्हें-नन्हें, सुकुमार,
अपरिभाषित सुख अनुभव करते हाथों से
अपनी जननी के पीन पयोधर को पकड़े,
ऊपर मुंह कर
दुद्धू पीता -
अधरों में जैसे त्रिशादुग्ध की
तृष्णा स्तन के सरस परस की तृप्त हुई
भोली-भाली, नैसर्गिक-सी मुस्कान बनी
गालों, आंखों, पलकों, भौंहों से चालक रही |

प्राकृतिक नग्नता के तेजस में ढला हुआ
नर पास खडा;
नग्ना नारी
अपने कृतज्ञ, कामनापूर्ण, कोमल, रोमांचित हाथों से
पति-पुष्ट-दीर्घ, दृढ़, शिशन दंड क्रीडाया पकड़,
हो ऊध्र्वमुखी,
अपने रसमय अधरों से पीती,
अधरामृत-मज्जित करती-
मुख-मुद्रा से बिम्बित होता
वह किस, कैसे, कितने सुख का
आस्वादन इस पल करती है!-

नवयुवक नग्न
जैसे अपना संतोष और उल्लास
चरम सीमा तक पहुंचा देने को,
अपने उत्थित हाथों से पकड़ सुराही,
मदिरा से पूरित,
मधु पीता है - आनंद-मग्न!

ईर्ष्या न किसे उससे
जो ऊपर से नीचे तक
ऐसा जीवन जिया
की ऐसा जीता है|
(हर सच्चा सीधा कलाकार
अभिव्यक्त वही करता
जो वह जीता,
जो उसपर बीता है|)

इस मूर्तिबंध का कण-कण
कैसी जिजीविषा घोषित करता!
यह जिजीविषा:, या जो कुछ भी,
उसको मैं अपने पूरे तन, पूरे मन, पूरी वाणी से
नि:शंक समर्थित, अनुमोदित, पोषित करता|

अमृत पीकर के नहीं,
अमर वह होता है,
पा मार्त्य देह,
जो जीवन-रस हर एक रूप,
हर एक रंग में
छककर, जमकर पीता है|
इतने में ही कवि की सारी रामायण,
सारी गीता है|

'मधुशाला' का पद एक
अचानक कौंध गया है कानों में-
'नहीं जानता कौन, मनुज
आया बनकर पीनेवाला?
कौन, अपरिचित उस साकी से
जिसने दूध पिला पाला?
जीवन पाकर मानव पीकर
मस्त रहे इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले
पाई उसने मधुशाला|'

क्या इसी भाव पर आधारित यह मूर्ति बनी?
क्या किसी पुरातन पूर्व योनी में मैंने ही यह मूर्ति गढी?
प्रस्थापित की इस पावनतम देवालय में,
साहस कर, दृढ़ विश्वास लिए-
कोई समान धर्मा मेरा
तो कभी जन्म लेगा
जो मुझको समझेगा?

यदि मूर्ति देख यह
तेरी आँखें नीचे को गड़ती
लगती है तुझे शर्म,
तो तुझे अभी अज्ञात
कला का,
जीवन का,
धर्म का,
मूढ़मति,
गूढ़ मर्म|

-हरिवंशराय बच्चन

3 comments:

  1. abey yaar....mere laal peele salone tomar da!!!

    मूढ़मति,
    गूढ़ मर्म

    !!!!!!!!

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  2. ye nagn aur anand magn kavita ko blog mein chhapne ka tatparya? kahin iski rachna mein aapka bhi koi haath to nahi hai ya bas saki ban kar sabko ye madhu pilane ki abhilasha rakhte ho :)

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  3. nahi bhai himanshu ... bas dil khush ho gaya yah kavita padhkar ... madhushala ke asli arth ko samajh liya :D
    - gaurav

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