Friday, October 29, 2010

विषय की तलाश है ...

कुछ लिखना चाहता हूँ
पर विषय की तलाश है
हँसना चाहता हूँ
पर खुशियाँ नहीं पास हैं
कब बरसेगा वो अम्बर
मेरे मन को प्यास है
मिल जाए इक ख़ुशी
जिसकी कबसे आस है
फिर से न जाने क्यों
आज ये दिल उदास है ||

कहते हैं खोजने पर खुदा भी मिल जाता है

तो सोचने पर विषय भी मिल ही जाएगा
कितना भी रोके खुदको
लेकिन मौसम आने पर ये अम्बर भी बरस ही जाएगा ||

Sunday, October 24, 2010

तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू ...

दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू
तुझे मैं कैसे हर ख़ुशी दिला दू ?

काश कि मैं तेरे पास होता
तेरा दर्द बाँटता, तेरा साथ देता
तेरे टूटते काँधों का एक सहारा बनता
इन कांटो भरी राह में फूलों के पत्ते बिछाता |

तुझे मैं कैसे ये दुखों का दरिया पार करा दू
दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू?


मंज़िल फिर भी तुझे मिल जाएगी
इतना तो मैं जानता हूँ
दोस्त , इतना कमज़ोर नहीं है तू
इतना तो तुझको पहचानता हूँ
बस चाहता हूँ कि अब जब तुझको ज़रूरत है
तो तेरा साथ निभाऊ
तेरे हर गिरते आंसू को कैद करने को
मैं एक प्याला बन जाऊ |

तू जिस पर हँस दे, मैं वो कौन सी तुझे बात सुना दू
दोस्त, तेरे ज़ख्मों को कैसे मैं अपना बना लू ?

- गौरव

Saturday, October 23, 2010

और मंज़िल को सामने पा.....

ज़िंदगी की हर डगर पर
मुश्किलें हैं हर कदम पर
इनसे तू घबरा नहीं, हार जाएगा यह सोचकर
जीत होगी ख़ुशी मिलेगी
टकराएगा इनसे अगर

जानता हूँ बहुत दुखदायी है
प्रयत्न करने पर भी हारना
पर ये जानो, उससे भी बुरा है
बिना लड़े ही हारना

एक बार गिर गया तो क्या
चल उठ फिर खड़ा हो जा
आशा की नजरों से देख
और मंज़िल को सामने पा ||

-गौरव

http://reedysafaris.com/images/Never%20Give%20Up.jpg

तू जैसे एक आदत सी बन गयी थी...

तू जैसे एक आदत सी बन गयी थी
तुझसे रोज लड़ना झगड़ना एक शरारत हो गयी थी |
कहने को तो मै अब भी तेरे पास ही हूँ
पर औपचारिकता रह जाएं अपनी बातें
पहले जो दिल को ख़ास हो गयी थी |

- गौरव